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________________ (६१) उनमें से श्राधी से अधिक वेश्याएँ ऐसी है जो एक समय कुल-वधुएँ थीं । वे समाज के धर्मढोगी नरपिशाचों के धक्क खाकर वेश्याएँ वनी हैं। व्यभिचारिणी स्त्री पुनर्विवाह क्यों नहीं करती? इसका कारण यह है कि पुनर्विवाह तो वह तय करे जब उममें ब्रह्मचर्याणुवत की भावना हो, जैनधर्म का सथा ज्ञान हो । जो स्त्री नये नये यार चाहती हो, उसे पुनः विवाह कैसे अच्छा लग सकता है ? अथवा वह तैयार भी हो तो जिन धर्मात्माओं ने उसे अपना शिकार बना रखा है वे क्व उसका पिंड छोडेंगे? पुनर्विवाह से तो शिकार ही निकल जायगा। स्त्रियों की अमानता और पुरुषों का स्वार्थ ही स्त्रियों को विधवाविवाह के पवित्र मार्ग से हटाकर व्यभिचार की तरफ ले जाता है। छठा प्रश्न कुशीला भ्रणहत्याकारिणी को और कृतकारित अनुमोटना से उसके सहयोगियों को पाप-बन्ध होता है या नहीं ? हमके उत्तरमें हमने कहा था कि होता है और जो लोग विधवा. विवाह का विरोध करके ऐसी परिस्थति पैदा करते है उन को भी पाप का बन्ध होता है । इसके उत्तर में आने पकों ने जो यह लिखा है कि "विधवाविवाह व्यभिचार है, उसमें अकलकदेव प्रणीत लक्षण नहीं जाता, श्रादि" इसका उत्तर प्रथम प्रश्न के उत्तर में अच्छी तरह दिया जा चुका है। प्राक्षेप (क)-विधवाविवाह के विरोधी व्यभिचार को पाप कहते है तो पाप करने वाले चाहे स्त्रियाँ हो चाहे पुरुष, वह सवे ही पापी है । (श्रीलाल ) समाधान-ऐसी हालत में जब विधवाविवाह पाप हे तो विधुरविवाह भी होना चाहिये या दोनों ही न होना
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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