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सूक्ति-सुधा ]
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टीका-जो सम्यक् दर्शनी है अर्थात् ससार के सुख मे रहते हुए भी जिनका दृष्टिकोण अनासक्त रूप है, ऐसे वीर पुरुषो का प्रयत्न चाहे वह कैसा भी हो तो भी शुद्ध ही है, ससार को घटाने वाला ही है, बशर्ते कि वे वास्तव मे अनासक्त और विरक्त हो ।
दंसण संपन्नयाए, भव मिच्छत्त छेयणं करेइ ।
उ०, २९, ६०वा, ग० टीका--दर्शन संपन्नता से, सम्यक्त्व से, धर्म में विश्वास करने से मिथ्यात्व का नाश होता है, भोगो की तरफ अरुचि बढ़ती है, ससारपरिभ्रमण की मात्रा घटती है, एव सूत्र-सिद्धान्तो का ज्ञान बढता है।
(८) " सम्म हिट्ठी सया अमूढे। -
- द०, १०, ७ - - - - • टीका--सम्यक् दृष्टि आत्मा ही, आत्मा और परमात्मा पर एक-. मात्र दृष्टि रखने वाला पुरुप ही, जान-दर्शन-चारित्र मे लीन व्यक्ति ही सदैव अमूढ़ होता है । वह चतुर, सत्दर्शी और सम्यक् मार्गी होता है।
दिदिठम, दिदिठ ण लसएज्जा।
___ सू०, १४, २५ टीका-सम्यग् दृष्टि पुरुष अपनी श्रद्धा को और अपने सम्यग -दर्शन को एव शुद्ध-भावना को दूषित नही करे।
सम्यक्-दर्शन में चल-विचलता, सशय, भावोकी समिश्रणता, विपरीत धारणा आदि दुर्गुण नहीं आने दे। . .
चउव्वीसत्थएण दसणविलोहिं जणयइ ।
उ०, २९, ९ वा, ग.