________________
८]
[ दुर्लभांग-शिक्षा-सूत्र
(१२) नो सुलभं पुणरावि जीवियं ।
सू०, २, १, उ, १ टीका-सयम जीवन वार-बार सुलभ नही है, इसलिये प्रमाद __ मत करो । अशुभ-मार्गमे प्रवृत्ति मत करो!
(१३ ) जुद्धारिहं खलु दुल्लहं ।
आ०, ५, १५५, उ, ३ टीका-सयम मार्ग पर चलते हुए-कर्त्तव्य-मार्ग पर चलते हुए नेवाले परिषहो को-उपसर्गों को, जो कि आर्य-शत्रु है, ऐसे आर्य शत्रुओ पर विजय प्राप्त करके इनको जीतना ही आदर्श काम है। इसीलिये कहा गया है कि आर्य-युद्ध बहुत कठिनाई से प्राप्त होता है। इस आर्य-युद्ध में ही वीरता बतलाओ। ,
(१४) इओ विद्धंसमाणस्स, पुणो संबोहि दुल्लभा।
___ सू० १५, १८ टीका-जो जीव इस मनुष्य शरीर से भ्रष्ट हो जाता है, उसको फिर बोध-प्राप्त होना दुर्लभ है। मनुष्य जन्म प्राप्त करके नो केवल सारा समय विषय-भोगो मे ही पूरा कर देता है, एवं दान, शील, तप, और भावना से खाली हाथ जाता है, उसे सम्यगदर्शन पुन. प्राप्त होना अत्यन्त कठिन है, इसलिये समय को सुदुपयोग धर्माराधन मे ही रहा हुआ है।
वहु कम्म लेव लित्ताणं, __ वोही होइ सुदल्लहा।
उ. ८, १५