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सूक्ति-सुधा]
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(१५) न तं अरी कंठ छित्ता करेइ, जं से करे अप्पणिया दुरप्पा ।
उ०, २०,४८ टीका-दुराचार मे प्रवृत्त हुआ यह आत्मा स्वय का जैसा और जितना अनर्थ करता है, वैसा अनर्थ तो कठ को छेदने वाला या काटने वाला शत्रु भी नहीं करता है। अनर्थमय प्रवृत्ति शत्रु की प्रतिक्रिया से भी भयकर होती है और अनेक जन्मो में दु.ख देने. वाली होती है।
(१६) कप्पिो फालियो छिन्नो, उक्कित्तो अ अणेगसो ।
उ०, १९, ६३ टीका--यह पापी आत्मा अनेक वार काटा गया, कतरा गया, फाड़ा गया, चीरा गया, छेदन किया गया, टुकड़े २ किया गया, और उत्कर्तन किया गया यानी चमडी उतार दी गई।
(१७) दो पक्को श्र अवसो, पाव कम्महिं पावित्रो।
उ०, १९, ५८ टीका-यह पापी आत्मा पाप कर्मो के कारण से अनेक वार __ आग से जलाया गया, पकाया गया और दु.ख झेलने के लिये ' विवश किया गया है।
(१८) पाडिओ फालियो छिन्नो, विष्फुरन्तो अणेगसो।
उ०, १९, ५५