________________
४६२ ]
१२- साध्वी
वह आदर्श महिला, जो कि पाच समिति और तीन गुप्ति का निर्दोष 'राति से परिपालना करती हुई अपने जीवन में ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना करती हो ।
[ व्याख्या कोष
१३ साधु
वह आदर्श पुरुष; जो कि पाच समिति और तीन गुप्ति का निर्दोष राति से परिपालना करता हुआ अपने जीवन मे ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना करता हो । १४ -- सामायिक
अमुक समय के लिये अथवा जीवन पर्यन्त के लिये ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना करते हुए सदोष प्रवृत्ति का त्याग करके निर्दोष व्यवहार का आराधना ही "सामायिक" है । सामायिक दो प्रकार की कही गई है
( १ ) अमुक समय तक के लिये मर्यादित समय की; यह सामायिक गृहस्थो के लिये कही गई है। इसमें दो करण और तीन योग से पाप की
निवृत्ति की जाती है ।
( २ ) जो सामायिक जीवन पर्यन्त के लिये ग्रहण की जाती हैं; वह - साधु-सामायिक कहलाती है और यह तीन करण और तीन योग द्वारा ग्रहण की जाती है ।
१५ - सावद्य - योग
मन, वचन और काया की दोष वाली प्रवृत्ति; एव पापमय व्यवहार ही - सावध-योग है |
( १ ) मन द्वारा अनिष्ट विचार किया जाना और पर के लिये हानिकारक विचारो को ही सोचते रहना "मन - सावद्य-योग" है ।
( २ ) पर को हानि पहुंचानेवाली भाषा बोलना, झूठ बोलना, मर्म 'घातक शब्द बोलना; अनीतिपूर्ण बोलना, " वचन - सावद्य-योग" है ।
( ३ ) शरीर द्वारा पर को हानि पहुचानेवाली प्रवृत्ति करना, हिंसा, चोरी, मैथुन, परिग्रह सग्रह आदि ढंग को पापपूर्ण प्रवृत्ति करना, गरीबों का
1