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व्याख्या कोष]
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८-विरक्त
जो आत्मा-इन्द्रियो के भोगो से, और सासारिक सुखो से, तथा मोह को पैदा करने वाली बातो से अथवा वातावरण से दूर ही रहे, वह “विरक्त" कहलाता है। . ९-वियोग
किसा भी वस्तु का एक वार अथवा अधिक बार सयोग होकर, तत्पश्चात् उसका सवध छूट जाना, "वियोग" कहलाता है सबध-विच्छेद ही "वियोग" है। १०-विराधना
तीर्थकर, गणधर, स्थविर, आचार्य, बहुश्रुत आदि की आज्ञा के विपरात चलना, शास्त्र-मर्यादा के खिलाफ आचरण का रखना "विराधना" है।
विराधना मिथ्यात्व का ही रूप है, जो कि आत्मा के लिये अहितकर है। ११-विवेक
हित और अहित का भान होना, अच्छे और बुरे की पहचान होना, व्यवहार योग्य और अव्यवहार योग्य वातो का ज्ञान होना।
१२-विषय __इन्द्रियों के भोग और परिभोग पदार्थ ही विषय कहलाते है। मन द्वारा भोग और परिभोग पदार्थों की जो मधुर कल्पना और भोग-कल्पना की जाती है, वही इस सबंध में "मन का विषय" कहा जा सकता है इन्दियो के विषय इस प्रकार है ----
१-कान के लिये-जीव शब्द, अजीव शब्द और मिश्र शब्द ! .
२- आंख के लिये .-देखी जाने वाली वस्तुओं का रूप-काला, पीला, लीला, लाल और सफेद । नाटक आदि का अन्तर्गत इसामें हो गया है !
'३-नाक के लिये .-सुगंध और दुगंध ।