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यास्या कोष
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नहीं कहकर अलॉकाकाश की संज्ञा दी गई है जो कि शून्य रूप ही है और जिसके क्षेत्रफल की मर्यादा का माप कोई भी यहां तक कि ईश्वर भी नहीं निकाल सकते है उसका क्षेत्रफल अनंतानंत राजू प्रमाण है ।। ____ लोक के तीन भाग किये गये है :-उच्च लोक, मध्य लोक आर नोचालोक। ५-लोकाकाश
आकाश लोक और अलोक दोनो स्थानो पर है ! लोक मर्यादित आकाश को अथवा छ व्यो से संयुक्त आकाश को लोकाकाश कहते है और छः दव्यों से रहित आकाश को अलोकाकाश कहा जाता है । लोकाकाश के व्यो का एक भी परमाणु अथवा प्रदेश अलोकाकाश मे नही जा सकता है, क्योकि धर्मास्तिकाय का वहाँ पर अभाव होने से किसी भी दशा मे गति अथवा स्थिति नहीं हो सकती है।
१-व्यामोह
कपाय और मोह के उदय से जीव की ऐसी मूच्छित अवस्था जिसमें कि केवल भोगो का ही ध्यान रहे, पुद्गल-सवधी सुखो का ही ख्याल रहे और आत्मा के हिताहित का विचार सर्वथा ही नहीं रहे । २----वचन गुप्ति , भाषा के ऊपर नियत्रण रखना, घातक और अनिष्ट भाषा का परित्याग करते हुए शिष्ट, मधुर और सत्य एव आवश्यक भाषा ही वोलना, वचन
गुप्ति है। ... ३-वाचाल ... वहत बोलने वाला । आवश्यकता और अन-आवश्यकता का ख्याल नहीं
रखते हुए वहुत अधिक बोलने वाला। '४-वासना
कषाय के कारण से आत्मा में जो अनिष्ट और नाचे बांदतों की जा जमे