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व्याख्या कोष ]
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५ -- प्रदेश - बंध
योग और कषाय के कारण से जब कर्म परमाणु आत्मा की ओर दूधपानी के समान मिलने के लिए आते हैं, उस समय आने वाले कर्म - परमाणुओ की जो तादाद अथवा समूह होता है, उसे ही प्रदेश वध कहते है ।
मन, वचन आर काया की शुभ अथवा अशुभ प्रवृत्ति प्रत्येक क्षण होती रहती है । निद्रा लेना भी एक प्रवृत्ति ही है, अतएव भावनानुसार कर्म - परमागुओ का आगमन आत्मा की ओर प्रत्येक क्षण होता ही रहता है, और प्रत्येक क्षण- इनकी तादाद अनतानत की सख्या में हा होती है। इसी प्रकार जिन कर्म परमाणुओ का कार्य-काल समाप्त हो जाता है और प्रत्येक क्षण ऐसा होता ही रहता है, इनकी भी तादाद अनतानत रूप से ही होती है |
इन प्रदेश वध के परमाणुओ का आठ कर्मो के भिन्न २ स्वभाव के रूप में विभाजन भावनानुसार आत्मा के प्रदेशो के साथ मिलने के समय ही हो जाया करता है । इसी प्रकार इनकी कार्य-काल की अवधि और इनकी भावनानुसार फल देने की शक्ति, दोनो का निर्माण भी उसी समय आत्म- प्रदेशों के साथ मिलने के वख्त ही हो जाया करता है |
६--प्रमाद
धार्मिक कार्यों के करने मे यानी पर-सेवा के कामो में और अपने नैतिक उत्थान के कामो में वेपर्वाही करना, आलस्य करना और उन्हें निश्चित किये हुए समय मे पूरा नही करना, “प्रमाद" कहलाता है ।
७-- प्रशम
चित्त के विकारो पर नियंत्रण रखना, कोच, मान, माया और लोभ को काबू में करना, विषयो को दबाना तथा नैतिकता का जीवन में विकास करना ही "प्रशम" अवस्था है । सम्यक्त्व के मूल पाँच लक्षणो में से यह पहला लक्षण है । - ८- प्रायश्चित
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लिए हुए व्रत, नियम, त्याग, प्रत्याख्यान, सयम में जो कोई दोप अथवा त्रुटा प्रमाद वश अथवा मूर्खता वश आ गई हो तो उसको स्पष्ट तौर पर गुरु