________________
व्याख्या कोष ]
2
[ ४३३
६ - निर्जरा
ऐसे पवित्र और सात्विक तथा धार्मिक काम, जिनसे आत्मा के माथ बचे हुए पुराने कर्म दूर हो जाते है और आत्मा पवित्र हो जाती है। निर्जरा के १२ भेद कहे गये है । वे इस प्रकार है १ अनशन, २ ऊनोदरता ३ वृत्तिसक्षेप ४ रस त्याग, ५ काय- क्लेश, ६ सलीनता, ७ प्रायश्चित, ८ विनय, ९ वैयावृत्य, १० स्वाध्याय, ११ ध्यान आर १२ उत्सर्ग |
७- निद्वंद्र
वाह्य और आभ्यतर दोनो प्रकार के झगडो, क्लेशो, और मोह-ममता से रहित होना । हर प्रकार से अनासका और मस्त रहना ।
८- निर्वेद
स्त्रा-पुरुष सवन्धी भोगो की इच्छा का नही होना । पूर्ण ब्रह्मचर्य - भावना ही निर्वेद है |
९ - निरवद्य-योग
-
मन की, वचन की और काया की ऐसी प्रवृत्ति, जो कि निर्दोष हो । मन द्वारा, वचन द्वारा, और काया द्वारा ऐसे काम करना, जिनसे कि व्रतो में; सम्यक्त्व में, चारित्र में दोष नही आवे, वह निरवद्य योग है ।
१० - निष्काम भावना
जिन सुन्दर विचारों में किसी भी प्रकार के फल की आकाक्षा नही होती है, जो विचारधारा मोह-ममता के कीचड से रहित होती है, जिस विचारप्रवाह में एक'न्त रूप से विश्व-हित की भावना ही प्रवाहित होती रहती है, उसे निष्काम भावना कहते है ।
११ - नो कषाय
जो स्वय क्रोध, मान, माया और लोभ रूप कषाय की श्रेणी में तो नहीं है, किन्तु जो कषाय की श्रेणा को उत्तेजित करता है, कषाय की श्रेणी को वेग देता है और इस प्रकार कषाय का जा छोटा भाई है, वही नोकपाय
२८