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व्याख्या कोष
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३ धर्म-विशेष के साथ भी जोड़ कर इसके द्वारा विशेषता बतलाई जाती है, जैसे कि जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, वैदिक दर्शन आदि ।
४ "आदरपूर्वक देखने" के अर्थ मे भी दर्शन का उपयोग किया जाता है । २-दर्शन मोहनीय
यह एक महान् अनिष्ट और घातक कर्म है, जो कि आत्मा के धार्मिक विश्वास को और सिद्धान्तो के प्रति आस्तिकता को उत्पन्न नहीं होने देता है । अच्छी और उच्च बातो के प्रति उत्पन्न होनेवाले विश्वास का यह कर्म नाश करने वाला है। इसके तीन भेद हैं -१ सम्यक्त्व मोहनीय, २ मिश्र मोहनीय, ३ मिथ्यात्वमोहनीय । ___ आत्मा के उच्च विकास के लिये, याने परमात्मपद की ओर वढने के लिये सब से पहले इसी कम का नाश करना पडता है, इसका नाश हो जाने पर ही चारित्र की प्रगति होना और गुणो का विकास होना शुरू हो जाता है।
३-दुर्भावना खराव विचार, अनिष्ट चिन्तन । भय, चिन्ता, शोक, तृष्णा, क्रोध,. झूरना आदि सभी दुर्भावनाएं ही है ।
४-दुर्वृत्ति
खराव आदतें, हल्का और तुच्छ स्वभाव, अनिष्ट व्यवहार, निन्दा योग्य आचरण, तथा धिक्कारने योग्य जीवन का वर्ताव, ये सव दुर्वत्तियाँ ही है।
५-देवाधिदेव
देवताओ के भी पूजनीय, इन्द्रो के भी आराधनीय महापुरुष । ईश्वर का एक विशेषण । देवताओ के भी देवता याने अरिहत अथवा तीर्थकर ।
६-द्रव्य जिसमें नई नई पर्यायें उत्पन्न होती रहती है, तथा फिर भी जिसकी मूलसत्ता अथवा धौव्यत्व तीनो काल में सदैव बना रहे, पर्यायो के उत्पन्न और नाश होने पर भी जिसकी मूलसत्ता का कभी भी नाश नही हो, वही द्रव्य है।