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शब्दानुलक्षी अनुवाद ]
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८४९ – विविध धर्म मार्ग का अनुसरण करनेवाला देवताओ में उत्पन्न होता है।
८५०- ( मुक्त आत्माएँ ) सभी सुख प्राप्त करती हुई अनागत मार्ग में ( शाश्वत् स्थान मे ) स्थित हो जाती है । ८५१ - सम्पूर्ण ससार मे जो काम भोग है, उनको पडित पुरुष भली"भाति समझे +
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८५२ - सभी प्रकार के सग से विनिर्मुक्त होती हुई सिद्ध आत्मा रज रोहित ( सर्वथा कर्म रहित ) हो जाती हैं।
८५३ - जो सभी प्रकार की संगति से दूर है, वही भिक्षु है ।
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८५४ -- सभी प्रकार के आरम्भ का परित्याग करना ही निर्ममत्व है । ८५५ – स्त्रिय) से सभी इन्द्रियो द्वारा अभिनिवृत्त ( दूर ही ) रहना चाहिये ।
८५६ - सभी अनर्थों को छोडता हुआ, आकुलता रहित होता हुआ भिक्षु कंपाय रहित होवे ।
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- ८५७ –– सभी आभूषण भार रूप है और सभी काम भोग दुख का लानेवाले है ।
८५८ - सभी प्राणियो को अपनी आयु ( जीवन ) प्रिय है ।
८५९ - ( मोक्ष-वर्णन में ) सभी स्वर ( शब्द ) शक्ति हीन हो जाते है, तर्क वहाँ प्रवेश नही कर सकता है, बुद्धि वहाँ अग्राहिका हो जाती है और कोई उपमा भी उसके लिये विद्यमान नही है । ८६० - सभी प्राणियो को अपना जीवन प्यारा है ।
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८६१ - मोक्ष मे जाने की इच्छावाला सभी काम-विषयो को देखता हुआ उनमें लिप्त नही होता है ।
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८६२ - सभी भूतो के साथ ( जीवो के साथ ) दया वाला और अनुकम्पा वाला होता हुआ सयमो ब्रह्मचारी और क्षमाशील होव । ८६३ -- आत्मा को जीत लेने पर सब कुछ जीता हुआ ! ही हैं पर विजय प्राप्त की जा चुकी है ।
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