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शब्दानुलक्षी अनुवाद]
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६८४-~माया उच्च गति का प्रतिघात करने वाली है और लोभ से
- दोनो लोक में भय रहा हुआ है। ६८५---माता, पिता, पुत्र, वधु, भाई, कोई भी मेरी रक्षा के लिये समर्थ
नही है। ६८६-माया मित्रो का नाश करती है। ६८७-माया-मृपावाद लोभ के दोपो को बढाता है । ६८८-माया-मृपावाद को छोड दो। ६८९-माया-मृषावाद को छाड़ दो। ६९०-जो माता पिता द्वारा मोह ग्रस्त हो जाता है, उसके लिये पर
लोक में सुगति सुलभ नही होता है । ६९१---माया को सरल भाव से जीती। ६९२----सदा के लिये माया को छोड दो। ६९३- विवेकी ) माया की सेवना नहीं करे और लाभ को छोड़ दे । ६९४-~त्यागी हुई (भोग्य वस्तुओ) को पुन भोगने की इच्छा मत करो।
६९६-मिथ्या दृष्टि वाले अनार्य होते है और वे ससार में चक्कर
लगाया ही करते है। ६९७-प्राणियो पर मैत्री-भावकी कल्पना करो। ६९८:–समयानुसार परिमित भोजन क ६९९---परस्पर मे कथा-वार्ताओ द्वारा मनोरजन नहा करे ।
७०१-मुनि महकार नहीं करता है। ७०२-हे मुनि | किसी की भी हिंमा मत करो, इसमें महान् भय रहा
हुआ है।