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मन्दानुलक्षी अनुवाद ]
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६५१ – भावना के योग से शुद्ध आत्मा जल मे नाव की तरह कहा
गया है ।
६५२ -- भावो की विशुद्धि से निर्वाण को प्राप्त होता है ।
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-६५३–कोई दूसरा बोलता हो तो बीच मे नही वोले । ६५४ - हितकारी और सत्य हो वोलना चाहिए ।
६५५ - भिक्षावृत्ति सुखो को लाने वाली है ।
६५६--- भिक्षु सत्य और मधुर बोलने वाला होता है ।
६५७ -- (भोगो की तल्लीनता) बार बार दुखो का ही घर है, और ज्यों ज्यो दुख, त्यो त्यो अशुभ ( विचार बढते ही रहते है ) 1
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६५८ - भोगे हुए भोगो का परिणाम सुन्दर नही होता है । ६५९--अनासक्त रूपसे भोजन करता हुआ मेघावी कर्मों से लिप्त नहीं होता है ।
६६० – दोष से वर्जित भोजन करो ।
-६६१ - भूतो के साथ याने प्राणियो के साथ वैर भाव मत रक्खो । ६६२-प्रज्ञ पुरुष जीवघातिनी (मर्मान्तक ) भाषा नही वोले ।
६६३- ये भोग कर्मों को सगति कराने वाले होते है ।
६६४ --- भोगे हुए भोग विष फल के समान है, कहुए परिणाम वाले है बार निरन्तर दुखो को लाने वाले है ।
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-भोगी ससार में भ्रमण करता है और अभोगी मुक्त हो जाता है ।
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६६६ - (मुमुक्षु) कुशीलो के सपूर्ण मार्ग का परित्याग करके महा निर्ग्रथों के मार्ग - अनुसार बोले ।