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शब्दानुलक्षी अनुवाद ]
६२३-जो स्पर्श इन्द्रिय के भोगो मे तीव्र गृद्धि भाव रखता है, वह
अकाल में ही विनाश को प्राप्त होता है।
६२४-मूर्ख आत्मा विपय-पाश से बची हुई होकर वार वार मोह
ग्रस्त होती है। ६२५- महत्वाकाक्षी उच्च स्थिति प्राप्त करके फिर कभी भी भोगों को
आकाक्षा नहीं करे। ६२६---बहुत कर्मों के लेप से लिप्न प्राणियो के लिए सम्यक् ज्ञान
दर्शन की प्राप्ति सुदुर्लभ होती है। ६२७~~ससारी जीव निश्चय ही विविध दु ख वाले होते है। ६२८-बहुत प्रकार से अनुशासित किया जान पर भी जो विवारों में
विकार नहीं आने देता है, वह निश्चय में समता शील होता
हुआ व्याकुलता से रहित होता है । ६२९स्त्रियां बहुत माया वाली होती है । ६३०-बालजन ही अभिमानी होता है। ६३१-अपनी आत्मा को वाल भाव में नही दिखाना चाहिए। ६३२-~मूखों की मृत्यु बार बार होती है। ६३३-मूर्ख आत्माएं पूर्व कृत कर्मों का फल भोगती है। ६३४-सयम पालना वालु-रेत के कौर के समान निस्स्वाद और
कठोर है। ६३५-मूर्ख पापो से डूबता है। ६३६-बाल आत्मा, मन्द आत्मा, मूढ आत्मा इस प्रकार फस जाती है.
जैसे कि मक्खी नाक और मुख के कफ रूप मल में फंस जाती है।
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