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गन्दानलक्षी अनुवाद ]
- ५९० - पाप कर्म न तो करे और नहीं करावे ।
५९१ - पाप दृष्टि वाला विनष्ट हो जाता है ।
५९२ - रौद्र भावना वाले पाप कर्म करते है और तीव्र ताप वाले
नरक मे पडते है ।
९९३ - मेधावी अत्म ध्यान द्वारा ही पापो को दूर कर देता है ।
५९४ - पाप से आत्मा को लौटा लो ।
५९५ – आरभ के काम पाप को पैदा करने वाले है और अतमें दुख का स्पर्श कराने वाले ही है ।
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५९६ =
-- देखो | लोक महान् भय वाला है
५९७ – सम्यक् दर्शनी विचार करे, और आसक्ति तथा मोह को दूर करे 1
५९८ - निंदा मत करो ।
५९९ –– जो प्रिय करने वाला है और प्रिय बोलने वाला है, वही शिक्षा ग्रहण करने की योग्यता रखता है ।
६०० – महात्मा के लिये न कोई प्रिय होता है और न कोई अप्रिय -
होता है ।
६०१ - किसी का भी प्रिय अप्रिय ( राग द्वेष के कारण से ) मत करो । ६०२ - प्रिय अप्रिय सभी शाति पूर्वक सहन करो ।
६०३ – जिसने आश्रव का
रोक दिया है और जो इन्द्रियो का दमन
करने वाला है, उसके पाप कर्म नही वधा करते है । ६०४ - मुनि पृथ्वी के समान धैर्यशाली होवे ।
६०५—इस ससार में मनुष्य अनेक प्रकार के अभिप्राय वाले होते हैं । ६०६—जो बार बार इन्द्रियो के भोगो का आस्वादन करता है, वह कुटिल आचरण वाला है ।
६०७-- प्रथम तीर्थकर के युग मे जनता सरल और जड थी, जब कि अतिम तीर्थकर के युग में जनता वक्र और जड़ है ।