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शब्दानुलक्षी अनुवाद ]
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४६९ - दुराचारी, प्रतिकूल वृत्तिं वाला, और वाचाल वहिष्कृत किया
जाता है ।
- ब्रह्मचारी को देवता, दानव और गन्धर्व भी नमस्कार करते है ।
४७०
४७१ - शरीर में उत्पन्न होने वाले दुःख पूर्वकृत कर्मों के ही
1 ४७२ - दंड दो प्रकार के कहे गयें हैं, वे इस प्रकार है :
और २ अनर्थ दंड ।
- ४७३- द्वेष वृत्ति वाली मूच्छी दो प्रकार की है ~ १ क्रोध और २ मान ।
१
महाफल हैं ।
- १ अर्थ दंड
४७४ - द्वेष दुर्गति का बढाने वाला है
४७५——आत्मा केवली के कहे हुए धर्म को सुनकर दो प्रकार से प्राप्त करता है: - १ क्षय रूप से और २ उपशम रूप से ! ४७६-दर्शन की संपन्नता से ( आत्मा ) सासारिक मिथ्यात्वक करता है ।
४७७ - दर्शन के अनुसार ही श्रद्धा रक्खो ।
छेदन
ध
४७८-- धर्म रूपी धुरा के अगीकार कर लेने पर धन से क्या (तात्पर्य - है ) ?
४७९ - जो धर्म- ध्यान में रत है, वही भिक्षु है ।
४८१ – धर्म का मूल विनय है ।
४८२-धर्म को समझने वाला सरल हृदयी होता है ।
४८०-धर्म के प्रति श्रद्धा के जम जाने पर साता वेदनीय जनित सुखो पर विरक्ति पैदा हो जाती है।
४८३ – वर्मो का मुख ( आदि स्त्रोत ) काश्यप-, ( श्री ऋषभदेव(स्वामी) है।