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दानुलक्षी अनुवाद ]
८.३४९:
. ४५२-- कठिनाई से छोड़ने योग्य ये काम-भोग अधीर पुरुषो द्वारा सर-.
लता पूर्वक नहीं छोड़े जा सकते है। - ४५३ -यह आत्म स्थित तृष्णा कठिनाई से पूरी जाने वाली है। .४५४-जैसे वृक्ष का पीला पत्ता गिर पडता है, वैसे ही मनुष्य के जीवन
को ( अचानक पूर्ण हो जाने वाला) समझो। - ४५५--यह शरीर सपत्ति दुर्लभ है। . * ४५६-शरीर द्वारा धर्म का परिपालन किया जाना दुर्लभ ही है । ४५७-श्रद्धा अनुसार ही त्याग- प्राप्ति भी दुर्लभ ही है। ४५८–निश्चय ही, मनुष्य-भव दुर्लभ है । ४५९-दुर्लभ श्रमण धर्म प्राप्त करके अकृत्यों द्वारा उसकी विराधना
मत करो। । ४६०-पुद्गल दो प्रकार के है-सूक्ष्म और वादर ।
४६१-समझ दो प्रकार की है:-१ ज्ञान समझ २ दर्शन समझ ।
मत
। ४६२–आकाश दो प्रकार का है: लोकाकाश और अलोकाकाश ।
४६३-क्रोध दो प्रकार का है-आत्मा प्रतिष्ठित और परप्रतिष्ठित ।
' ४६४-दर्शन दो प्रकार का है:–१ सम्यक्त्व दर्शन और २ मिथ्या..
. त्व दर्शन । ,४६५-दो प्रकार का धर्म कहा. गया है.-१ श्रुत धर्म और २ ... चारित्र वर्म। • ४६६-ज्ञान दो प्रकार का है –१ प्रत्यक्ष और २ परोक्ष ।
४६७-बघ दो प्रकार का है :-१ राग वध और २ द्वेष वंध । ४६८--सामायिक दो प्रकार की हैं:-१. गृहस्थ सामायिक और २
साध सामायिक ।