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शब्दानुलक्षी अनुवाद ]
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३७४ - जो श्रेय हो, कल्याणकारी हो, उसीका आचरण करो ।
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३७५ -जो मारने योग्य है, उसकी आकाक्षा नही करे 1
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३७६—घ्यान योग का आचरण करके सब प्रकार से काया को अनिष्ट प्रवृत्ति से दूर कर दो ।
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३७७ – राग और द्वेष रूपी अग्नि से जलते हुए ससार को हम नही समझ रहे है | ( यह आश्चर्य है | )
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. ३७८ - वह भाषा नहीं कही जाय, जो हिंसा पैदा करने वाली हो ।
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३७९ -- अनुत्तर- ( श्रेष्ठ ) धर्म को जान कर क्रिया करता हुआ ममत्व भावना नहा रखे ।
३८० - पंडित अग्नि सववी समारंभ नहीं करे ।
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. ३८१ – महान् शूर वीर, महापुरुष वार वार जन्म मरण नही करता है ।
२ ३८२ - तीर्थंकरो के लिये नमस्कार हो ।
। ३८३ - सिद्धो के लिये नमस्कार हो ।
३८४ - टूटा हुआ जीवन पुन नही जोडा जा सकता है, फिर भी बालजन पाप करता ही रहता है ।
३८५ - प्रज्ञावान् पुरुष किसी की भी हंसी मजाक नही करे ।
३८६ – लम्बे समय तक वार्तालाप नही करे ।
(३८७-- ( हे आत्मा'' ) तेरे लिये वे, (ज्ञाति जन ) न तो सरक्षक हो • सकते हैं और न शरण दाता ही । इसी प्रकार तुम भी उनके लिये न तो सरक्षक और न शरण दाता ही हो सकते हो ।