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________________ शब्दानुलक्षी अनुवाद [३२५ २२७६-चार प्रकार के कामो से जीव देव-योनि का कर्म बघ करते ....... " है,-१ सराग सयम. से, २.सयमासंयम से ३ वाल-तपस्या से और ४ अकामनिर्जरा से। २७७-चार प्रकार के कामो से जीव मनुष्य-गति का कर्म वर्ष करते '' है;-१ प्रकृति की भद्रता से, २ विनीत भाव से, ३ दयालु प्रकृति से और ४ मात्सर्य भाव नही रखने से। २७८-चार प्रकार के पुरुष वाचना देने योग्य नहीं होते हैं:-१ अवि , नीत, २ स्वाद इन्द्रिय में गृद्ध, ३ क्राधी आर ४ कपटी।, २७९-चार प्रकार के आचार्य होते है १ आवले के मधुर फ़ल समान, २ द्राक्ष मधुर फल समान, ३ क्षीर मधुर फल समान और ४ -:.-- खाड मधुर फल समान । - . . २८०-ये चारो ही परिपूर्ण कपाय, पुन पुन जन्म-मरण की जड़ो को 3. , .सीचते रहते है।। . २८१-ध्यान चार प्रकार का है, आत्तं ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म-ध्यान, ... .. और शुक्ल ध्यान । . . . . . . •~ ..२८२-चार,प्रकार के धर्म द्वार है-१क्षमा, २ विनय,-३ सरलता, __ और ४ मृदुता याने सतोष ।-:- .-. ; २८३-चौरे प्रकार की भाषा कही गई है -१, याचनिका, २ पृच्छ निको, ३ अवनाहिका और ४ पृष्ट-व्याकरणिका । २८४-चारो कपाय सदा छोड़ने योग्य है। २८५-चार प्रकार के पुरुष वाचना देने के योग्य होते है -१ विनीत, . .. २ स्वाद-इन्द्रिय में अगुद, ३ . क्षमा-शील और ४ सरल. हृदय वाला। २८६-~-चार प्रकार की विकथाएँ कहीं गई है -१-स्त्री. कथा, २ भोजन कंघा, ३ देश कथा और ४ राज कथा ।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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