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________________ सन्दिानुलक्षी अनुवाद ] [३२३ २६४ --जो गुरु की आशतिना या अविनय नहीं करता है, वहीं पूज्य है। २६५-गंध रूप विषय में अनुरक्त मनुष्य के लिये जरा भी सुख कैसे और कब हो सकता है ? । २६६-जो चारो कषायो से रहित हो गया है, वही पूज्य है । • २६७-चार प्रकार की बुद्धि बतलाई गई है, औत्पातिकी, वैनयिकी, कार्मिकी, और पारिणामिकी।। २६८-काव्य चार प्रकार का है । गद्य, पद्य, कथा और गेय । । २६९-प्रायश्चित चार प्रकार का है :- १ ज्ञान प्रायश्चित २ दर्शन . प्रायश्चित, ३ चारित्र प्रायश्चित और ४ व्यक्तकृत्य प्रायश्चिन । २७०-वध चार प्रकार का है - १ प्रकृति वध, २ स्थिति वध, ३ अनुभाव वंध और ४ प्रदेश वध । - २७१-सघ चार प्रकार का है, १ सोधु, २ साध्वी, ३ श्रावक और ४ श्राविका । २७२--ससार चार प्रकार का है, १ द्रव्य ससार, २ क्षेत्र संसार, ३ काल ससार, और ४ भाव ससार । -२७३-चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति से दर्शन-विशुद्धि (सम्यक्त्व शुद्धि) होती है। + १२७४--चार प्रकार के कामो से जीव तिर्यच योनि का कर्म बध करते है १ माया से, २ ठगने का कार्य करने से, ३ झूठ वचन से, और ४ खोटा तोल खोटा माप करने से । २७५-चार प्रकार के कामो से जीव नरक-योनि का कर्म-बघ करते है ।१ महा आरंभ से, २ महा परिग्रह से, ३ पचेन्द्रिय जीवो की ! . “घात करने से और ४ मास का आहार करने से ।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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