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-शब्दानुलक्षी अनुवाद ]
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१६८ – आज्ञाकारी लज्जा वाला, एकान्त सम्यक् दृष्टि पुरुष अमायाको होता है - निष्कपट होता है ।
१६९ -- शान्ति द्वारा क्रोध का नाश करे ।
१७० -- जैसे पक्षी नष्ट हुए फल वाले वृक्ष को छोड़ कर चले जाते हैं. वैसे ही भुक्त भाग भी पुरुष को छोड़ देते है । ( भोगो से क्षीण होकर अंत में पुरुष मर जाता है | )
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१७१ – दु.ख का अनुभव अकेले को ही आर खुद को ही करना पडता ' १७२ – अकेला धर्म ही रक्षक है, अन्य कोई यहाँ पर रक्षक नही पाया जाता है ।
१७३ - एकाग्र रूप से मन का सनिवेश करने से चित्त निरोध होता है
१७४ - एकत्व भावना की ही प्रार्थना करो ।
१७५–यह लोक ज्वर के समान एकान्त दुख रूप ही है ।
१७६ - वश में नहा किया हुआ आत्मा एक शत्रु रूप ही है, इसा प्रकार केपाय और इन्द्रियाँ भी शत्रुरूप ही है
१७७ - प्राणी अकेला ही जाता है और अकेला ही आता है ।
१७८ - में अकेला ही हूँ, मेरा काई नहा है, और मैं भी किसी का नही हूँ ।
१७९ - एक ही आत्मा है ।
१८० - एक ही चारित्र है ।
१८१ - एक के जीत लेने पर पाँच जीत लिये जाते है, पाँच के जीन लेन पर दस जीत लिए जाते हैं ।
१८२ - एक ही ज्ञान है ।
१८३ – अकेला स्वय हा दुःख का अनुभव करता है ।