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शब्दानुलक्षी अनुवाद ]
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१८- - आत्मस्थ हेतु - ( मिथ्यात्व आदि ) निज का बन्ध करने वाले है और बंध को ससार का हेतु कहते हैं ।
१९ - जो अध्यात्मरत्त सुसमाधि वाली आत्मा है, वही भिक्षु है । २० – पूतना ( रोग विशेष ) से जैसे तरुण वालक ( दुखी होते है ) वैसे ही कामो से - ( भोगो से ) विषयो मे आसक्त ( आत्माएं दुखी होती है )
२१ - मूढ आर्त्त ( आर्त्तध्यान सबधी कामो ) मे अजर अमर की तरह ( फसे हुए है )
-२२–प्रत्याख्यात अनगार ( प्रतिज्ञा लिया हुआ साधु) प्राप्त करे | ( निर्मठ आत्मावाला होता है ) |
-२३ – अनगार का चारित्र धर्म दो प्रकार का है, सराग सयम और वीतराग सयम |
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२४---जो अनर्थ रूप हैं, उन्हे सर्वथा परिवर्जित कर दे | -२५ – अनाविल ( पाप रहित ) अथवा अकषायी ही भिक्षु - २६ किचित् भी अनागत नही है ( यानी कोई भी पदार्थ
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छोड दे )
होता है |
ऐसा नही
हैं, जो कि पहले नही मिला' हो' ) अंत मेरे राग को दूर करने के लिये श्रद्धा ही समर्थ है |
२७–अव्यावाध सुख का आकांक्षी ( मोक्ष का अभिलापी ) गुरु की प्रसन्नता के अभिमुख होता हुआ रमए करे । ( गुरु की आज्ञानुसार चलता रहे। )
-अनासक्त होता हुआ जो काटो को ( कप्टो को ) सहता है, वही पूज्य है ।
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२९–अनित्य ( नायवान् ) जीव-लोक में क्यो आभक्त रहता है ३० -सुख शील जाति वालो के साथ यह वास, अनित्य है ।
३१ – अनिदान भूत होता हुआ (आश्रव रहित होना हुआ) जीवन
व्यवहार चलावे |
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