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सूक्ति-सुधा ]
(४५) सत्त भय द्वाणा, इह लोग भए, पर लोग भए, आदाण भए, अक्रम्हा भए, बेयणा भए, मरण भए, असि लोग भए ।
ठाणा०, ७वा, ठा, १५
टीका--सात प्रकार के भय के स्थान कहे गये है- (१) इस लोक मनुष्य का, (२) पर लोक का भय, (३)
का भय,
यानी मनुष्य 'मनुष्य को चोरी, वटवारा आदि का भय, (४) अकस्मात् रूप से पैदा होनें - वाला भय, (५) वेदना, रोग आदि का भय, (६) मृत्यु भय और ( 3 ) अयश, अपकीर्ति का भय ।
( ४६ )
सत्तविहे श्राउमेदे, अज्झवसाय, निमित्ते, आहारे, वेयणा, पराघाए, फासे, श्राषाणू
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ठाणा०, ७वा, ठा ३८
टीका—सात प्रकार से आयुष्य टूट सकती है -- ( १ ) भयानक विचार से, भयानक कल्पना अथवा भयानक स्वप्न से, (२) शस्त्र आदि के निमित्त से, (३) बहुत आहार करने से, (४) शूल आदि से. (५) पराघात से दूसरो की चोट आदि देखने पर कायर होने की हालत मे हृदय के फेल हो जाने पर, (६) सर्पादि के दश से, और - (७) श्वास आदि रोग से ।
- इति