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________________ २८० [प्रकीर्णक-सूत्र (३२) चउबिहे संघे, समणा, समणीओ, सावगा, साविगायो। ठाणा०, ४था, ठा, उ, ४,३० टोका-भगवान महावीर स्वामी की गासन-व्यवस्था, यानी महावीर स्वामी के अनुयायी चार भागो में विभाजित किये गये हैं:-१ साधु, २ साध्वी, ३ श्रावक और ४ श्राविका । चत्तारि वाणिज्जा विणीए, __ अविगइपडिबद्धे, विउसवियपाहुडे अमायी । ठाणां०, ४या, ठा, उ, ३, २७ टीका--चार प्रकार के पुरुष वाचना देने के योग्य होते है - ६१) विनीत, (२) स्वाद-इन्द्रिय में अगृद्ध-अनासक्त, (३) क्षमाशील और (४) सरल हृदय वाला। ' (३४) चत्तारि अवायणिज्जा, अविणीप, विगइप्पडिवद्धे, अविउसविय पाहुडे, मायी । ठाणां०, ४था, ठा, उ, ३,०२७ टीका--चार प्रकार के पुरुप वाचना देने के अयोग्य है. (१) सविनीत, (२) स्वाद-इन्द्रिय में गृद्ध-आसक्त, (३) क्रोधी और (४) मायावी-कपटी। (३५) चत्तारि समणो वासगा. अम्मापिइ समाण, भाइसमाणे मित्तसमाणे, सवत्ति समाणे । ठाणा०, ४था, ठा, उ,३, २०
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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