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[ प्रकीर्णक-सूत्र
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टीका - धर्मास्तिकाय का लक्षण, जीव और पुद्गल को गति देने मे --आवश्यकता पड़ने पर सहायक रूप होना है, जैसे जल मछली की चाल मे सहायक है ।
टीका - अधर्मास्तिकाय का लक्षण जीव और पुद्गल को “स्थिति” धारण करने के समय में सहायक रूप होना है । जैसेधूप मे थके हुए मुसाफिर के लिये वृक्ष की छाया है ।
( २२ ) भायां सव्व दव्वानं, नहं ओगाह लक्खणं । उ० २८, ९
टीका - आकाश सभी द्रव्यो का भाजन है, सभी द्रव्यों के अवगाहन के लिये, यानी रहने के लिये स्थान देता है । छ ही द्रव्यो के रहने के लिये आकाश ही केवल एक आधार भूत द्रव्य है । ( २३ ) वित्तणा लक्खणो कालो ।
( २१ ) अहम्मो ठाण लक्खणो ।
उ०,२८,९
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उ०, २८, १०
टीका-काल वर्त्तना लक्षण वाला है, यानी नये को पुराना करना और पुराने को जीर्ण-शीर्ण करना ही, वस्तुओं के विनाश मे मदद पहुँचाना ही काल का लक्षण है । जैसे कि कैची और कपडे का
सवध है |
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( २४ ) छक्काय. श्रहिया, णावरे कोइ विज्जई | -
सू०, ११,८
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