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सूक्ति-सुधा]
'१.८) • अणंत गुणिया नरएसु दुख वेयणा ।
उ०, १९, ७४ टीका-नरक-स्थानो मे यहा से अनन्तगुणी भयकर दुख वेदनाऐंहै । वेदनाऐ अनन्तगुणी ठडी, अनन्तगुणी उष्ण, अनन्तगुणी भूख-प्यास वाली और अनन्तगुणी चिन्ता और खेद जनक है।
(९) पास ! लोए महन्भय।
आ०, ६, १७४, उ, १ टीका--देखो | ससार मे कितना भय रहा हुआ है । मौत का,. वियोग का, अनिष्ट सयोग का, रोग का, हानि-लाभ का, कलह-.. अशाति का. नाना तरह का भय और शोक ससार में व्याप्त है। इसलिये हमें ईश्वर और आत्मा पर विश्वास करके, सत्कार्यों द्वारा नैतिक और सात्विक आचरण द्वारा इस ससार-परिभ्रमण को समाप्त करने का प्रयत्न करना चाहिये । आत्मा को निर्मल बनाना चाहिये।
बहु दुक्खा हु जन्तवो।
आ०, ६, १७५, उ, १ टीका-इस ससार मे सभी प्राणी विभिन्न दुखो में, विभिन्न क्लेशो मे, विभिन्न सतापो मे, विभिन्न पीडाओ और वेदनाओ मे फसे हए है। इसका मूल कारण पूर्व-जन्मो में कृत और सचित अशुभ कार्य और कर्म ही है । इसलिये कार्य करते समय ध्यान रक्खो कि यह मै अशुभ कार्य कर रहा हूँ या शुभ कार्य कर रहा हूँ। अन्यथा घोर दुख उठाना पड़ेगा।