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भोग-दुस्प्रवृत्ति-सूत्र
णिक्खम्म से सेवइ अगारि कम्म, ण से पारए होइ विमोयणाए ।
सू०, १३, ११... टाका-संयम-मार्ग पर आरूढ होकर भी जो पुरुष सांसारिक आरंभ-समारंम करता है, या भोगो को भोगने की इच्छा करता है, ऐसा पुरुष अपने कर्मो को यानी अपनी दुष्वृत्तियो-को और वासनाओं को क्षय नही कर सकता है, और इस प्रकार मोक्ष की प्राप्ति भी या अनन्त निर्मलता की प्राप्ति भी-उस कैसे हो सकती है ?
(२) - -- -भोगा- भुत्ता - विसफलोवमा,, ... . . कहुय विवागा अणुबंध दुहावहा : - उ०, १९, १२
, टीका--हमने भोग तो भोगे है अथवा भोग रहे है, किन्तु इनके फल साक्षात विष के समान है। इनका. विपाक-या परिणाम अत्यत कडुआ है. और निरन्तर दुखो को देने वाला है।
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न सुन्दरो।
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... ..: भुत्ताण मोगाणं परिणामो न सुन्दरो। - . . . उ०, १९, १८ . . टीका--भक्त भोगो का परिणाम कभी भी सुन्दर नही हो सकता
है। इन भोगो का फल कदापि श्रेयस्कर नहीं हो सकता है। ..