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'सूक्ति-सुधा]
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( ३२ ) सच लोयसि जे कामा, तं विज्ज परिजाणिया।
सू०, ९, २२ टीका-समस्त लोक में जो काम-भोग है, विद्वान् पुरुष उनको दु.ख के कारण समझ कर तथा ससार में परिभ्रमण कराने वाले समझ कर उन्हे त्याग दे । काम भोग से सर्वथा सम्बन्ध विच्छेद कर दे।
(३३) पंचविहे काम गुणे,निच्चसो परिवज्जए।
___उ०, १६, १०, __ टीका-पांचो प्रकार के काम गुणो को-(१) मधुर काम वर्द्धक शब्द, (२) काम दृष्टि से देखना ( ३) पुष्प माला आदि सुगन्धित पदार्थों का शृङ्गार, (४) काम वर्द्धक-भोजन और ( ५ ) काम वर्द्धक स्पर्श-क्रिया आदि को ब्रह्मचारी सदैव के लिये छोड़ दे। ब्रह्मचर्य की घात करने वाली पांचो इन्द्रियो की प्रवृत्ति का ब्रह्मचारी परित्याग कर दे।
काम कामी खलु अयं पुरिसे, से सोय ,जूरइ, तिप्पड़, परित पइ ।
आ०, २, ९३, उ, ५ 'टीका-जो कामान्ध होता है, जो भोगान्ध होता है, उसे भोगपदार्थो का वियोग होने पर, रोग होने पर अथवा मृत्यु के सन्निकट आने पर शोक करना -पड़ता है, झूरना पड़ता है, प्रलाप करना थड़ता है, आतरिक वाह्य रूप से ताप, परिताप भोगना पड़ता है, घोर