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________________ २१८] [ कामादि-सूत्र दुज्जय काम भोगे य, निच्चसो परिवज्जए। उ०, १६, १४ टीका-ये काम-भोग अत्यत कठिनाई से जीते जाने वाले हैं, पूर्ण ज्ञान-साधना और सतत जागरूकता होने पर ही इन काम__भोगो पर विजय प्राप्त की जा सकती है। अतएव सदैव के लिये ब्रह्मचारी इनका परित्याग कर दे । काम भोगे य दूंच्चए। उ०, १४, ४९ टीका-ये काम-भोग अत्यत कठिनाई से त्यागे जाते है। इनसे पिड छुडाना महान् कठिन है । यत्न पूर्वक और ज्ञान पूर्वक ही भोगों का त्याग किया जा सकता है । इसलिये सदैव भोगो के प्रति जागरूक रहने की-सावधान रहने की आवश्यकता है । सत्ता कामेसु माणवा । आ०, ६, १७५, उ, १ ___टीका-आश्चर्य की बात है कि मनुष्य काम-भोगो मे फसे हुए है। पर-लोक, मौत और नाना-विध दु खो का जरा भी विचार भोग भोगते समय नहीं किया करते है। आयु क्षीण हो रही है, परन्तु इसका उन्हे जरा भी ख्याल नहीं है । क्या यह आश्चर्य की बात नही है ? ( १८ ) न कामभोगा समयं उवेन्ति । उ०, ३२, १०१
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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