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[ कामादि-सूत्र
दुज्जय काम भोगे य, निच्चसो परिवज्जए।
उ०, १६, १४ टीका-ये काम-भोग अत्यत कठिनाई से जीते जाने वाले हैं, पूर्ण ज्ञान-साधना और सतत जागरूकता होने पर ही इन काम__भोगो पर विजय प्राप्त की जा सकती है। अतएव सदैव के लिये
ब्रह्मचारी इनका परित्याग कर दे ।
काम भोगे य दूंच्चए।
उ०, १४, ४९ टीका-ये काम-भोग अत्यत कठिनाई से त्यागे जाते है। इनसे पिड छुडाना महान् कठिन है । यत्न पूर्वक और ज्ञान पूर्वक ही भोगों का त्याग किया जा सकता है । इसलिये सदैव भोगो के प्रति जागरूक रहने की-सावधान रहने की आवश्यकता है ।
सत्ता कामेसु माणवा ।
आ०, ६, १७५, उ, १ ___टीका-आश्चर्य की बात है कि मनुष्य काम-भोगो मे फसे हुए है। पर-लोक, मौत और नाना-विध दु खो का जरा भी विचार भोग भोगते समय नहीं किया करते है। आयु क्षीण हो रही है, परन्तु इसका उन्हे जरा भी ख्याल नहीं है । क्या यह आश्चर्य की बात नही है ?
( १८ ) न कामभोगा समयं उवेन्ति ।
उ०, ३२, १०१