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सूक्ति-सुधा]
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रूवेहिं लुप्पंति भयावहेहिं ।
मू० १३, २१ टीका--स्त्री का रूप, अग-प्रत्यंग आदि भयकर है, जो पुरुष स्त्री के रूप मे आसक्त होते है, उनकी इस लोक मे भी निंदा होती है, और पर लोक मे नरक-आदि नीच-गति की प्राप्ति होती है। दोनो लोक मे स्त्री-आसक्ति से विविध दु:ख, ताडना, मारना आदि पीडाऐ सहन करनी पडती है ।
कामे कमाही, कमियं खु दुक्खं ।
द०, २, ५ _____टीका-कामनाओ को यानी पांचो इन्द्रिय संबधी विषयो को
और मन की वासनाओ को हटा दो। इससे दुख, सक्लेग, जन्ममरण आदि व्याधियाँ अपने आप ही हट जायगी। विषय-वासना का नाश ही दुःख का नाश है।
मूलमेय महमस्ल।
द०, ६, १७ टीका-यह अब्रह्मचर्य पाप की जड़ ह, अधर्म का मूल है । यह सभी प्रकार के पतन और दुःखो को लाने वाला है। इस लोक और परलोक मे शांति चाहने वाले को इससे बचना चाहिये।
(७) सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसी विसोवमा ।
उ०, ९, ५३ टीका-ये काम-भोग तीक्ष्ण नोक वाले शल्य यानी काटे के समान है, जो कि शरीर और चित्त में गहरे घुसकर रात और दिन