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सूक्ति-सुधा]
[१४५ ( ९३ ) दिठेहिं निवेयं गाच्छिज्जा ।
, आ०, ४, १२८, उ, १ टीका-राग-द्वेष की दृष्टि से, रति-अरति की दृष्टि से, आसक्ति और तृष्णा की दृष्टि से विरक्त हो जाओ। आत्मा को पतन की ओर ले जाने वाली भावनाओ से निवेद-अवस्था ही सम्यक्त्व की भूमिका है, यही त्याग-भावना का मूल आधार है।
अच्चेही अणु सास अ-पी।
. मू०, २, ७, उ, ३ . . . टीका--विपय-सेवन से अपनो आत्मा को पृथक् करो और उसे शिक्षा दो। धर्म-मार्ग की ओर प्रेरित करो। सयम में ही शादि है, और असयम में दुख ही दुख है, इस पर अपना दृढ विश्वास जमाओ।