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शील-ब्रह्मचय-सूत्र
- (१) तवेसु वा उत्तम धभचेरं,
मू०, ६, २३ टीका-तप तो नाना प्रकार के है। परन्तु सभी तपो मे ब्रह्मचर्य ही सर्वोत्तम तप है । ब्रह्मचर्य की महान् महिमा है । मन वचन और काया से-विशुद्ध ब्रह्मचर्य पालने से मुक्ति के द्वार सहज मे ही खुल जाते है। .
(२) इथिओ जे ण सेवंति, प्राइमोक्खा हु ते जणा।
सू०, १५, ९ टीका-जो स्त्री-सेवन नही करते है, स्त्री के साथ किसी भी प्रकार का संवध नही रखते हैं, वे पुरुष सवसे प्रथम मोक्ष-गामी होते है । वे शीघ्र ही मुक्त हो जाते है। ब्रह्मचर्य की महिमा अपूर्व है; •असाधारण है।
देव दाणब गन्धव्वा वम्भयारिं नमसंति ।
उ०,१६, १६ टीका-ब्रह्मचर्य की महिमा महान् है। वास्तविक ब्रह्मचारी 'ग्रिलोकपूज्य होता है, त्रिलोक रत्न होता है। देव, दानव, गन्धर्व सभी, क्या नरेन्द्र और क्या देवेन्द्र प्रत्येक प्राणी ब्रह्मचारी को नमस्कार करते है।