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[ सत्यादि भाषा-सूत्र .: (२०). . . . सचा वि सा न वत्तव्वा, -जओ पावस्ल आगमो।
द०, ७, ११ । . . . . . . .: टीका-सत्य होती हुई भी उस वात को नहीं कहना चाहिये, जिससे कि पाप की, पतन की और हानि की सम्भावना हो, जिससे अन्य को आघात पहुचने की सम्भावना हो। ऐसी वाणी-शब्द रूप से सत्य मालूम पड़ती हुई भी झूठ का ही अङ्ग है।
जमट्ठ तु न जाणिजा,
एव मेति नो वए।
, द०, ७, ८ , . टीका-जिस बात को अच्छी तरह से नही जानते है, उसके सम्बन्ध में "यह ऐसा ही है" इस प्रकार निश्चय-पूर्वक नही बोलना चाहिये । क्योकि यह झूठ है । यह असत्य भाषण है। इससे हानि होने की सम्भावना हो सकती है। .
( २२ ) मुसं परिहरे भिक्खू । ...
उ०, १, २४ टीका--साधु या आत्मार्थी झूठ को छोड़ दे। झूठ प्रतिष्ठा का और विश्वास का नाश करने वाला है। .
(२३) सया सच्चेण संम्पन्ने.
मिति भूएहिं कप्पए। __ . सू., १५, ३, टीका-सदैव सत्य को ही जीवन का आराध्य बना कर जीव
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8., १५, ३,