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'पुस्तक की छपाई सम्बन्धी सभी प्रकार की व्यवस्था करने के "जैनप्रकाश वम्बई" के सहसपादक श्रीयुत रत्नकुमारजी 'रत्नेश' ने काफी श्रम उठाया है, इसके लिये उनका भी आभार प्रदर्शित करता हूँ।
'जिन सात आगमोकी प्रतियो से ये सूक्तियां सग्रहित की गई हैं उनके सपादको का और प्रकाशको का भी मै कृतज्ञ हूँ।
कलापूर्ण छपाई और शुद्धि की ओर मेरा खास ध्यान रहा है, और इसके - लिये प्रयत्न तथा अपेक्षाकृत अधिक खर्च भी किया है, फिर भी त्रुटियो का रह जाना स्वाभाविक है, इसके लिये पाठक गण क्षमा करे, और उन्हे सुधार कर पढने की कृपा करे।
पुस्तक की त्रुटियो और अशुद्धियो के सवधमें पाठक गण मुझे लिखने की कृपा करेगे तो मै उनका परम कृतज्ञ रहूँगा, तया सूचनानुसार दूसरी आवृत्ति मे सुधारने का प्रयत्न करूँगा।
अन्तमे यही निवेदन है कि यदि इस पुस्तक से पाठको को कुछ भी लाभ पहुँचा तो मै अपना यह श्रम साध्य सारा प्रयत्न सफल समझगा। ॐ शान्ति !
विनीत
- विजयदशमी, । - सवत् २००७