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________________ सूक्ति-सुधा] जे धम्मे अणुत्तरे, तं गिराह हियति उत्तम। सू०, २, २४ उ, २ टीका-जो धर्म श्रेष्ठ है, जो एकान्त रूप से आत्मा का कल्याण करने वाला है, जो हितकारी है, जो कषाय से मुक्ति दिलाने वाला है, जो उत्तम है, हित-अहित का भान कराने वाला है, ऐसे धर्म को और अहिंसा व्रत को ग्रहण करो-इसे जोवनमे स्थान दो। (२७) सुहावह धम्म धुरं अणुत्तर, धारेह निव्वाण गुणावह मह । उ., १९, ९९ - टीका-सुखो को लाने वाली और सुखोको वढानेवाली, मोक्षगुणो को देनेवाली, ऐसी सर्वश्रेष्ठ, धर्म रूप धुराको धारण करना चाहिए । धर्म का आचरण करना चाहिये। (२८) चरिज धम्मं जिण देसियं पिऊ । उ०, २१, १२ टीका--विद्वान पुरुष, पाप-भीरु आत्मार्थी, जिन भगवान, द्वारा उपदिष्ट धर्म का ही आचरण करे। इन्द्रिय दमन करे। पक्षी के समानु अनासक्त और निर्लेप जीवन में ही सार्थकता समझे । (२९) . . व्वो खेचनो चेव कालओ, भावमओतहा, जयणा चउन्विहा वुत्ता। उ०, २४, ६
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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