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[धर्म-सूत्र
टीका-~~धर्म करने वाले के लिए, स्व और पर का कल्याण करने वाले के लिए सभी रात्रिया-रात और दिन सफल ही जा रहे है।
(९) धम्मं पि काऊणं जो गच्छई, परं भवं, सो सुही होई।
उ०, १९, २२ टीका-जो आत्मा धर्म करके-नैतिक और आध्यात्मिक नियमों का आचरण करके परलोकमे जाता है, वह सुखी होता है उसको सभी अनुकूल पदार्थो का सयोग प्राप्त होता है । प्रति कल पदार्थो से वह सदैव दूर रहता है।
(१०) धम्मं चर सुदुच्चर।
उ०, १८, ३३ टीका-आचरण करने के समय तो कठिन दिखाई देने वाले और फल के समय सुन्दर दिखाई देने वाले धर्म का, जो कि अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, शुद्ध भावना आदि आध्यात्मिक और नैतिक क्रियाओं का स्प है, पालन करो-आचरण करो।
(११) - एस धम्मे धुवे निच्चे, सासए जिण देसिए।
उ०, १६, १७ टीका-~~यह ब्रह्मचर्य-धर्म ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत् हे और वीतराग जिन देव द्वारा तथा अरिहतो द्वारा प्ररूपित है। त्रिकाल सत्य है । सपूण ज्ञान का सार रूप है और सभी धर्मों का मक्खन रूप अग है । यह सर्वोपरि और सर्वोत्तम धर्म ह ।