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सूक्ति-सुधा]
[४५ आत्मा अलोक मे क्यो नही जाती है और लोक के अंतिम अग्र भाग पर ही क्यों ठहर जाती है ? इसका उपरोक्त उत्तर है।
(११) अतुल सुह सागर गया, अव्वाषाहं प्रणोवर्म पत्ता।
उव०, सिद्ध, २२ टीका-मुक्त जीवों के सुख की उपमा किसी से भी नहीं दी जा सकती है, क्योकि उपमाएँ तो मात्र पौद्गलिक वस्तु सवन्धी और मानवीय कल्पनात्मक एव अनुमानात्मक होती है, जबकि मोक्ष-सुख अपौद्गलिक, शब्दातीत, अनुमानातीत और अननु-मेय होता है । अतएव मुक्त आत्माएँ अतुल सुख-सागर मे निमग्न रहती है । मोक्ष-सुख अवर्णनीय और अनिर्वचनीय होता है । मनुष्य-बुद्धि उसका वर्णन नही कर सकती है।
(१२) सिद्धाण सोक्खं अन्यायाहं ।
उवः, सिद्ध, १३ टीका-मुक्त आत्माएँ शरीर-रहित है, कर्म-रहित है, अतएव मोक्ष में भौतिक सुख नही है, ऐन्द्रिक और मानसिक सुख नही है। पौद्गलिक और नाश हो जाने वाला सुख वहाँ कैसे हो सकता है ? मोक्षमें तो वाधारहित, अनन्त, स्थायी अपरिमेय और अनुपम आत्मिक सुख है।
(१३) सासयामबाबाई चिटुंति,
सुही सुहं पत्ता। - ( उव., सिद्ध, १९