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मोक्ष-सूत्र
(१) खमं च सिवं अणुत्तरं ॥
उ०, १०, ३५ __टीका-मोक्ष निरावाध सुख वाला है, शाश्वत् है, कल्याणकारी है, सर्वोत्कृष्ट है । मोक्ष क्षेम मय है, शिव मय है और सर्व श्रेष्ठ है।
.(२) सव्वे सरा नियति, तक्का जत्थ नविज्जइ,
मई तत्थ न गाहिया, उवमा न विज्जए । . आ०, ५, १ १-१७२-उ, ६
टीका--आत्मा की मुक्त-अवस्था शब्दातीत है, शब्दो से उसका वर्णन नही किया जा सकता है, सब शब्द उसके स्वरूप का वर्णन . करने मे हार खा जाते है । तर्क-शास्त्र भी अपनी असमर्थता बतला देता है । मनुष्यो की बुद्धि, कल्पना और अनुमान भी उसके मूल स्वरूप को नही खोज सकते है। किसी. उपमा द्वारा भी उस मुक्त. अवस्था की तुलना नही की जा सकती है। इस प्रकार मुक्ति-अवस्था अनिर्वचनीय है, अतर्कनीय है, अनुमानातीत है, अनुपमेय है । वह तो केवल अनुभव-गम्य मात्र है । अपौद्गलिक है, एकान्त रूप से आत्मा की सर्वोच्च और अन्तिम मौलिक अवस्था है। केवल स्थायी निराबाध आध्यात्मिक आनंद अवस्था है । वेद भी 'नेति नेति"-"ऐसा नही है ऐसा नही है," यह कहकर उसके स्वरूप वर्णन मे अपनी असमर्थता जाहिर करते है ।