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जैनागम स्तोक संग्रह १० लोकस्तुभिका ११ लोक प्रतिबोधिका १२ सर्व प्राणीभूत जीव सत्व सौख्यवाहिका। इसको परिधि (घेराव) १,४२,३० २४६ योजन, एक कोस १७६६ धनुष पौने छः अंगुल जारी है। इस शिला के एक योजन ऊपर जानेपर-एक योजन के चार हजार कोस मे से ३६६६ कोस नीचे छोड़कर शेष एक भाग में सिद्ध भगवान विराजमान है। यदि ५०० धनुष की अवगाहना वाले सिद्ध हुए हो तो ३३३ धनुष और ३२ अंगुल की (क्षेत्र) अवगाहना होती है। सात हाथ के सिद्ध हए हो तो चार हाथ और सोलह अगुल की (क्षेत्र) अवगाहना होती है। यदि दो हाथ के सिद्ध हुए हों तो एक हाथ और आठ अंगुल की (क्षेत्र) अवगाहना होती है । ये सिद्ध भगवान कैसे है ? अवर्णी, अगन्धी, अरसी, अस्पर्शी, जन्म जरा-मरण-रहित और आत्मिक गुण सहित है। ऐसे सिद्ध भगवान को मेरा समय-समय पर वंदनानमस्कार होवे।
॥ छः काय के बोल समाप्त ॥