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________________ जैनागम स्तोक संग्रह ६२ योजन जाने पर बुध का तारा आता है, ८९१ योजन जाने पर शुक्र का तारा आता है, ८६४ योजन ॐ चा जाने पर वृहस्पति का तारा आता है, ८६७ योजन ऊंचा जाने पर मंगल का तारा आता है, पृथ्वी से ६०० योजन ऊचा जाने पर शनिश्चर का तारा आता है । इस प्रकार ११० योजन का ज्योतिष चक्र है । पांच चर है पांच स्थिर है । अढाई द्वीप में जो चलते है वो चर और अढ़ाई द्वीप के बाहर जो चलते नहीं वे स्थिर है । जहाँ सूर्य है वहां सूर्य और जहाँ चन्द्र है वहां चन्द्र | वैमानिक के ३८ भेद : ३ किल्विषी १२ देवलोक & लोकांतिक, 8 ग्रैवेयक ५ अनुत्तर विमान, कुल ३८ । I किल्विषी देव : तीन पल्योपम की स्थिति वाले प्रथम किल्विषी पहले दूसरे देवलोक के नीचे के भाग मे रहते है । तीन सागर की स्थिति वाले दूसरे किल्विषी तीसरे चोथे देवलोक के नीचे के भाग मे रहते है । तेरह सागर की स्थिति वाले तीसरे किल्विषी छठे देवलोक के नीचे के भागमे रहते है । ये देव ढ़ेढ़ (भगी) देव पण े उत्पन्न हुए है । कैसे ? तीर्थकर, केवली, साधु, साध्वी के अपवाद बोलने से ये किल्विषी देव हुए है । वारह देवलोक :- १ सुधर्मा देवलोक २ ईशान देवलोक ६ सनत् कुमार देवलोक ४ महेन्द्र देवलोक ५ ब्रह्म देवलोक ३ लातक देवलोक ७ महाशुक्र देवलोक ८ सहस्रार देवलोक ९ आणत देवलोक १० प्रारणत देवलोक ११ आरण देवलोक १२ अच्युत देवलोक । वारह देवलोक कितने ऊचे, किस आकार के व इनके कितने कितने विमान है ? इसका विवेचन इस प्रकार है । ज्योतिपी चक्र के ऊपर असंख्यात योजन करोडाकरोड - प्रमारण
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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