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________________ छः काय के बोल १ जलचर : जलमे चले सो जलचर तिर्यच । जैसे-१मच्छ २ कच्छ, ३ मगरमच्छ ४ कछ आ ५ ग्राह ६ मेढक ७ सुसुमाल इत्यादिक जलचर के अनेक भेद है । इनका "कुल" १२॥ लाख करोड़ जानना। २ स्थलचर : जमीनपर चले सो स्थलचर तिर्यच । इनके विशेष नाम१ एक खुरवाले-घोड़े, गधे खच्चर इत्यादि । २ दो खुरवाले—(कटेहुए खुरवाले) गाय, भैस, बकरे, हिरन,रोझ ससलिये आदि। __ ३ गण्डीपद -(सोनार के एरण जैसे गोल पाँव वाले) ऊँट, गेड़े आदि। ४ श्वानपद-(पंजेवाले जानवर) वाघ, सिंह, चीता, दीपड़े (धब्बे वाले चीते) कुत्ते, विल्ली, लाली, गीदड़, जरख, रीछ, बन्दर इत्यादि । स्थलचर का "कुल" दस लाख करोड़ जानना। ३ उरपरिसर्प के भेद : हृदय बल से जमीन पर चलने वाले सो उरपरिसर्प । इनके चार भेद-१ अहि, २ अजगर, ३ असालिया ४ महुरग। १ अहि-पाँचो ही रङ्ग के होते है । १काला, २ नोला, ३ लाल, ४ पीला, ५ सफेद। २ मनुष्यादि को निगल जावे सो अजगर । ३ असालिया-- यह दो घड़ी मे १२ योजन (४८कोस) लम्बा हो जाता है। चक्रवर्ती (वलदेवादि) की राजधानी के नीचे उत्पन्न होता है । इसे भस्म नामक दाह होता है, जिससे आस पास के ग्राम ,नगर सेना सब दब कर मर जाते है इसे असालिया कहते हैं।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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