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________________ छः काय के बोल ५१ जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट ४६ दिन का है । इनका "कुल" आठ लक्ष करोड़ जानना । चौरिन्द्रिय : जिसके १ काय २ मुख ३ नासिका ४ चक्षु (आख) ये चारइन्द्रिय होवे उसे चौरिन्द्रिय कहते है । जैसे- १ भँवरे १ भँवरी ३ बिच्छू ४ मक्खी ५ तीड (टीढ) ६ पतग ७ मच्छर - मसेल & डांस १० मस ११ तमरा १२ करोलिया १३ कसारी १४ तोड़ गोड़ा १५ फुंदी १६ कैकड़े १७ बग १५ रूपेली आदि चौरिन्द्रिय के अनेक भेद है । इनका आयुष्य जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट छ माह का है । "कुल" नव लक्ष करोड़ जानना । पंचेन्द्रिय के भ ेद : जिसके १ काय २ मुख ३ नासिका ४ नेत्र ५ कान - ये पांच इन्द्रिय हो उसे पचेन्द्रिय कहते हैं । इनके चार भेद १ नारक २ तिर्यच ३ मनुष्य ४ देव । १ नरक का विस्तार : नरक के सात भ ेद . १ घम्मा १ वशा ३ शिला ४ अंजना ५ रीष्टा ६ मघा ७ माघवती । सात नरक के गोत्र : १ रत्नप्रभा २ शर्कराप्रभा ३ बालुप्रभा ४ पकप्रभा ५ धूमप्रभा ६ तमस्प्रभा ७ तमस् तमः प्रभा । सात नरक के ये सात गोत्र गुणनिष्पन्न है, जैसे:—— १ रत्नप्रभा मै रत्न के कुण्ड है । २ शर्कराप्रभा मे मरड़िया आदि ककर है । ३ बालुप्रभा मे बालु (रेत) है |
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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