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बारह प्रकार का तप
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रस परित्याग तप के अनेक प्रकार है-विगय ( दूध, दही, घी, गुड, शक्कर, तेल, शहद, मक्खन आदि ) का त्याग करे । प्रणीत रस (रस झरता हुआ आहार) का त्याग करे, निवि करे, एकासन करे, आयंबिल करे, पुरानी वस्तु, बिगडा हुआ अन्न, लूखा पदार्थ आदि का आहार करे । इत्यादि रस वाले आहार को छोडे । ___काया क्लेश तप के अनेक भेद है-एक ही स्थान पर स्थिर होकर रहे, उकडु-गौदुह-मयूरासन पद्मासन आदि ८४ प्रकार का कोई भी आसन करके बैठे । साधु की १२ पडिमा पालन, आतापना लेना, वस्त्र रहित रहना, शीतउष्णता (तडका) सहन करना, परिषह सहना । थूकना नही, दान्त धोने नहीं, शरीर की सार सम्भाल करना नही । सुन्दर वस्त्र पहिनना नही, कठोर वचन गाली, मार प्रहार सहना, लोच करना, नगे पैर चलना आदि ।
प्रतिसलिनता तप के चार भेद-१ इन्द्रिय सलिनता, २ कषाय सलिनता, ३ योग सलि०, ४ विविध शयनासन संलि०, (१) इन्द्रिय सलिनता के ५ भेद-(पाचो इन्द्रियो को अपने-२ विषय मे राग द्वेष करते रोकना (२) कषाय सलि० के चार भेद-१ क्रोध घटा कर क्षमा करना । २ मान घटा कर विनीत बनना, ३ माया को घटा कर सरलता धारण करना, ४ लोभ को घटा कर सतोष धारण करना । (३) योग प्रति सलिनता के तीन भेद-मन वचन, काया को बुरे कामो से रोक कर सन्मार्ग मे प्रवर्तावना। (४) विविध शयनासन सेवन प्रति संलि० के अनेक भेद है-उद्यान चैत्य, देवालय, दुकान, वखार, श्मशान, उपाश्रय आदि स्थानो पर रह कर पाट पाटले, बाजोट, पाटिये, बिछौने, वस्त्र-पात्रादि प्रासुक स्थान अगीकार करके विचरे।
आभ्यन्तर तप १ प्रायश्चित के १० भेद-१ गुर्वादि सन्मुख पाप प्रकाशे, २ गुरु के बताये हुवे दोष और पुनः ये दोष नही लगाने की प्रतिज्ञा करे,