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अजीब परिणाम
रस-मूल रस पांच है-तोखा, कड़वा, कषैला, खट्टा, मीठा और क्षार (नमक का रस) मिलाने से षट् रस कहलाते है।
स्पर्श--आठ प्रकार का है-कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, रुक्ष, स्निग्ध । ___ अगुरु लघु-न तो हल्का और न भारी जैसे परमाणु प्रदेश, मन भाषा, कार्मरण शरीर आदि के पुद्गल । शब्द-दो प्रकार के है-सुस्वर और दुःस्वर ।
बारह प्रकार का तप
(श्री उववाई सूत्र) तप १२ प्रकार का है। ६ बाह्य तप, (१ अनशन, २ उनोदरी, ३ वृत्तिसंक्षेप, ४ रस परित्याग, ५ काया-क्लेश, ६ प्रतिसलिनता), और ६ आभ्यन्तर तप, (१ प्रायश्चित, २ विनय, ३ वैयावच्च, ४ स्वाध्याय, ५ ध्यान, ६ काउसग्ग)।
अनशन के २ भेद-१ इत्वरीक-अल्प काल का तप, २ अवकालिक-जावजीव का तप। इत्वरीक तप के अनेक भेद है-एक उपवास, दो उपवास यावत्, वर्षी तप (१ वर्ष तक के उपवास) । वर्षी तप प्रथम तीर्थकर के शासन में हो सकता है । २२ तीर्थकर के शासन मे ८ माह और चरम (अन्तिम) तीर्थकर के समय मे ६ माह उपवास करने का सामथ्य रहता है।
अवकालिक -(जावजीव का) अनशन व्रत के २ भेद १ एक भक्त प्रत्याख्यान और २ पादोपगमन प्रत्याख्यान । एक भक्त प्रत्या० के २ भेद-(१) व्याघात उपद्रव आने पर अमुक अवधि तक ४ आहार का पच्चखाण करते जैसे अर्जुनमाली के भय से सुदर्शन सेठ ने किया था । (२) निर्व्याघात-(उपद्रव रहित) के दो भेद (१) जावजीव तक ४ आहार का त्याग करे (२) नित्य सेर, आधासेर तथा पाव सेर दूध या पानो की छूट रख कर जावजीव का तप करे।