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________________ हियमाण-वढ्ढमाण ( श्री भगवती सूत्र, शतक ५ उ० ८ (१) जीव हियमान ( घटता ) है या वर्द्धमान ( वढता ) ? न तो हियमान है और न वर्द्धमान परन्तु अवस्थित ( बध -घट बिना जैसे का तैसा रहे) है | (२) नेरिया हियमान, वर्धमान और अवस्थित भी है एव २४ दण्डक, सिद्ध भगवान वर्धमान और अवस्थित है । (३) समुच्चय जीव अवस्थित रहे तो शाश्वत नेरिया हियमान, वर्धमान रहे तो ज० १ समय उ० आवलिका के असख्यातवे भाव और अवस्थित रहे तो विरह काल से दुगुरगा (देखो विरह पद का थोकडा) एव २४ दण्डक में अवस्थित काल विरह से दूना, परन्तु ५ स्थावर अवस्थित काल हियमानवत् जानना । सिद्धो मे वर्धमान जघन्य १ समय, उत्कृष्ट ८ समय और अवस्थित काल जघन्य १ समय उत्कृष्ट ६ माह । ५५६
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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