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________________ ५५४ जैनागम स्तोक संग्रह भाषा संसार रूप ही बोलते हैं और १६ दण्डक के जीव चारों ही प्रकार की बोलते हैं । (१७) जीव जिस प्रकार की भाषा रूप में द्रव्य ग्रहण करते है वे उसी प्रकार की भाषा बोलते हैं । (१८) वचन द्वार - बोलने वाले - व्याख्यानदाताओं को नीचे का वचन ज्ञान करना (जानना चाहिए। एक वचन, द्विवचन, बहु वचन; स्त्री वचन, पुरुष वचन, नपुंसक वचन, अध्यवसाय वचन, वर्ण ( गुरण कीर्तन), अवण (अवर्णवाद), वर्णावर्ण (प्रथम गुण करने के बाद अवर्णवाद), अवर्ण वर्ण (प्रथम अवगुण करके पश्चात् गुरण कहना), भूत-भविष्य- वर्तमान काल वचन, प्रत्यक्ष-परोक्ष वचन, इन १६ प्रकार के सिवाय विभक्ति तद्धित, धातु, प्रत्यय आदि का ज्ञाता होवे । (१९) शुभ इरादे से चार प्रकार की भाषा बोलने वाला आराधक हो सकता है । (२०) चार भाषा के ४२ नाम है, सत्य भाषा के १० प्रकार - १ लोक भाषा २ स्थापना सत्य [चित्रादि के नाम से कहलाने वाली ] ३ नाम सत्य [ गुण होवे या नहीं होवे जो नाम होवे वह कहना ] ४ रूप सत्य [तादृश रूप समान कहना जैसे हनुमान समान रूप पुतले को हनुमान कहना ] ५ अपेक्षा सत्य ६-७ व्यवहार सत्य भाव सत्य योग सत्य १० उपमा सत्य । असत्य वचन के १० प्रकार - १ क्रोध से २ मान से ३ माया से ४ लोभ से ५ राग से ६ द्वेष से ७ हास्य से ८ भय से [इन कारणो से बोली हुई भाषा - आत्म ज्ञान भूल कर ] बोली हुई होने से सत्य होने पर भी असत्य है । परपरिताप वाली १० प्राणातिपात [ हिंसक ] भाषा एवं १० प्रकार की भाषा असत्य है | मिश्र भाषा के १० प्रकार - इस नगर में इतने मनुष्य पैदा हुवे, इतने मरे, आज इतने जन्म मरण हुवे, ये सर्व जीव है, ये सब अजीव
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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