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________________ ५५२ जैनागम स्तोक सग्रह १ द्रव्य से अनन्त प्रदेशी द्रव्य को भाषा रूप से ग्रहण करते है। २ क्षेत्र से असंख्यात आकाश प्रदेश अवगाहे ऐसे अनन्त प्रदेशी द्रव्य को भाषा रूप में लेते है। ३ काल से १-२-३-४-५-६-७-८-६-१० सख्याता और असख्याता समय की एव १२ बोल की स्थिति वाले पुद्गलों को भाषा रूप से लेते है। ___४ भात्र से-५ वर्ण, २ गन्ध, ५ रस, ४ स्पर्श वाले पुद्गलो को भाषा रूप में ग्रहण करते है। यह इस प्रकार के एकेक वर्ण, एकेक रस, और एकेक स्पर्श के अनन्त गुणा अधिक के १३ भेद करना अर्थात् वर्ण के ५४१३=६५, गन्ध के २४१३=२६, रस के ५४१३ =६५ और स्पर्श के ४४१३=५२ बोल हुवे । इनमे द्रव्य का १ बोल क्षेत्र का १ और काल के १२ बोल मिलाने से २२२ बोल हुवे ये २२२ बोल वाले पुढगल द्रव्य भाषा रूप से ग्रहण होते है-(१) स्पर्श किये हुवे (२) आत्म अवगाहन किये हुवे (३) अनन्तर अवगाहन किये हुवे (४) अगुवा सूक्ष्म (५) बादर स्थूल (६) उर्ध्व दिशा का (७) अधो दिशा का (८) तीर्थी दिशा का ६) आदि का (१०) अन्त का (११) मध्य का (१२) स्वविषय का (भाषा योग्य) (१३) अनुपूर्वी [क्रमशः] (१४) त्रस नाली की ६ दिशा का (१५) ज० १ समय उ० असख्यात समय की अ० मु के सान्तर पुद्गल (१६) निरन्तर ज. २ समय ज २ समय उ, असंख्य समय की अ मु का (१७) प्रथम के पुदगलों को ग्रहण करे, 'अन्त समय त्यागे मध्यम कहे और छोडता रहे ये १७ बोल और ऊपर के २२२ मिल कर कुल २३६ बोल हुवे समुच्चय जोव और १६ दण्डक एवं २० गुण करने से २३६४२०=४७८० बोल हुवे।। (६) सत्य भाषापने पुद्गल ग्रहे तो समुच्चय जीव और १६ दण्डक ये १७ वोल २३६ प्रकार से [ ऊपर अनुसार ] ग्रहे अर्थात् १७४२३६=४०६३ बोल इसी प्रकार असत्य भापा के ४०६३ बोल
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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