SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 568
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनागम स्तोक संग्रह (१) स्यात् अस्ति-सिद्ध स्वगुण अपेक्षा है। (२) स्यात् नास्ति-सिद्ध पर गुण अपेक्षा नही ( परगुणों का अभाव है) (३) स्यादस्ति-नास्ति-सिद्धो में स्वगुणो की अस्ति और परगुणो की नास्ति है। (४) स्यादवक्तव्य-अस्ति-नास्ति युगपत् है तो भी एक समय मे नही कही जा सकती है। (५) स्यादस्ति अवक्तव्य-स्वगुणो की अस्ति है तो भी १ समय में नही कही जा सकती है । (६) स्यान्नास्त्य वक्तव्य-पर गुणो की नास्ति है और १ समय में नही कहे जा सकते है। (७) स्यादस्तिनास्त्य वक्तव्य-अस्ति नास्ति दोनो है परन्तु एक समय में कहे नही जा सकते। इस स्याद्वाद स्वरूप को समझ कर सदा समभावी वन कर रहना जिससे आत्म-कल्याण होवे। AULI
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy