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________________ प्रमाण-नय ५४१ अनुयोग, (२१) तीन जागृति, ( २२ नव व्याख्या, ( २३ ) आठ पक्ष, ( २४ ) सप्त-भगी। नय-(पदार्थ अश को ग्रहण करना ) प्रत्येक पदार्थ के अनेक धर्म होते है और इनमे से हर एक को ग्रहण करने से एकेक नय गिना जाता है-इस प्रकार अनेक नय हो सकते है, परन्तु यहा सक्षेप से ७ नय कहे जाते है।। नय के मुख्य दो भेद है-द्रव्यास्तिक (द्रव्य को ग्रहण करना) और पर्यायास्तिक ( पर्याय को ग्रहण करना) द्रव्यास्तिक नय के १० भेद-१ नित्य २ एक, ३ सत्, ४ वक्तव्य, ५ अशुद्ध, ६ अन्वय, ७ परम, ८ शुद्ध ६ सत्ता, १० परम-भाव द्रव्यास्तिक नय-पर्यायास्तिक नय के ६ भेद-१ द्रव्य २ द्रव्य व्यजन, ३ गुण, ४, गुण व्यजन, ५ स्वभाव, ६ विभाव-पर्यायास्तिक नय । इन दोनो नयो के ७०० भेद हो सकते है। __नय सात-१ नैगम २ सग्रह ३ व्यवहार ४ ऋजु-सूत्र ५ शब्द ६ समभिरूढ ७ एवं भूतनय इनमे से प्रथम ४ नयो को द्रव्यास्तिक, अर्थ तथा क्रिया नय कहते है और अन्तिम तीन को पर्यायास्तिक शब्द तथा ज्ञान नय कहते है। १ नैगम नय-जिसका स्वभाव एक नही-अनेक मान, उन्मान, प्रमाण से वस्तु माने तीन काल, ४ निक्षेप सामान्य-विशेष आदि माने इसके तीन भेद ( १ ) अश-वस्तु के अश को ग्रहण करके माने जैसे निगोद को - सिद्ध समान माने। (२) आरोप-भूत, भविष्य और वर्तमान, तीनो कालो को वर्तमान मे आरोप करे। ( ३ ) विकल्प-अध्यवसाय का उत्पन्न होना एव ७०० विकल्प हो सकते है। शुद्ध नैगम नय और अशुद्ध नैगम एव दो भेद भी है। २ सग्रह नय-वस्तु की मूल सत्ता को ग्रहण करे जैसे सर्व जीवो
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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