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________________ जैनागम स्तोक संग्रह क्षेत्र वेदना द्वार : दश प्रकार का है - अनन्त क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दाह (जलन, ज्वर, भय, चिन्ता, खुजली और पराधीनता । एक से दूसरी में, दूसरी से तीसरी में ( इस प्रकार ) अनन्त अनन्त गुणी वेदना सातवी नरक तक है । नरक के नाम के अनुसार पदार्थो की भी अनन्त वेदना है । ५२० देव कृत वेदना : १-२-३ नरक में परमधामी देव पूर्व कृत पाप याद करा- करा कर विविध प्रकार से मार दुख देते है । शेष नरक के जीव परस्पर लड़-लड़ कर कटा करते है । वैक्रिय द्वार : नेरिये खराब ( तीक्ष्ण ) शस्त्र के समान रूप बनाते है अथवा वज्रमुख कीड़े रूप होकर अन्य नेरियो के शरीरो में प्रवेश करते है । अन्दर जाने के बाद बड़ा रूप बना कर शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर डालते हैं । अल्पबहुत्व द्वार : सर्व से कम सातवी नरक के नेरिये, उससे ऊपर ऊपर के असंख्यात गुणा नेरिये जानना | शेष विस्तार २४ दण्डकादि थोकड़ों में से जानना ।
SR No.010342
Book TitleJainagam Stoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Maharaj
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year2000
Total Pages603
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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